अल्फाज कहाँ से लाँऊ.. तेरी बंदगी के,
महसुस हो कर बिछड़ जाते हो.. बिल्कुल हवा की तरह।
मन्नते और मिन्नते कुछ भी काम नहीं आता..
चले ही जाते हैं वो जिन्हें, जाना होता है।
मोहब्बत की हवा और मेडिकल की दवा,
इंसान की तबियत बदल देती है!
कुछ आपका अंदाज है.. कुछ मौसम रंगीन है,
तारीफ करूँ या चुप रहूँ.. जुर्म दोनो संगीन है।
कौन कहता है कि हम झूठ नही बोलते,
एक बार खैरियत तो पूछ के देखिये।
रिश्तों के दलदल से, कैसे निकलेंगे,
जब हर साज़िश के पीछे, अपने निकलेंगे।
दिल लगाना बड़ी बात नही..
दिल से निभाना बड़ी बात है।
ग़लतफहमी में जीने का मज़ा कुछ और ही है..
वरना हकीकतें तो अक्सर रुला देती है।
सांस के साथ अकेला चल रहा था,
सांस गई तो सब साथ चल रहे थे।
गर तुम-सी कोई वजह नही..
तो जीने में कोई मज़ा नही.!!
No comments:
Post a Comment