Saturday, June 3, 2017

दोहरे चरित्र में नहीं जी पाता हूँ...Hindi Shayari...

दोहरे चरित्र में नहीं जी पाता हूँ,
इसलिए कई बार अकेला नजर आता हूँ।



दरख्तों से ताल्लुक का, हुनर सीख ले इंसान,
जड़ों में ज़ख्म लगते हैं, टहनियाँ सूख जाती हैं।



तुम्हारा दबदबा लोगो यहाँ सिर्फ ज़िन्दगी तक है
किसी की कब्र के अंदर ज़मींदारी नही चलती।



बिछड़ के तुझ से किसी दूसरे पे मरना है,
ये तजरबा भी इसी ज़िंदगी में करना है।



मुझसे बिछड़ के खुश रहते हो,
मेरी तरह तुम भी झूठे हो।



दिल तोड़ना आज तक नही आया मुझे,
प्यार करना माँ से जो सिखा मेने।



कैद में परिंदा आसमान को भूल जाता हैं,
कैद से छूट भी गया तो उड़ान भूल जाता हैं।



शर्मा कर मत छुपा चहरे को पर्दे में,
हम चेहरे के नहीं, तेरी आवाज के दीवाने है।



दिल का दर्द अपना अब सारी हदें आर पार कर रहा है,
दिलबर भी कितना संगदिल है एक जुर्म को ही बार बार कर रहा है।



यहाँ गरीब को मरने की इसलिए भी जल्दी है ग़ालिब,
कहीं जिन्दगी की कशमकश में कफ़न महँगा ना हो जाए।

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