Tuesday, June 6, 2017

आज फिर...उतनी ही मोहब्बत से बुलाओ ना...

आज फिर.. उतनी ही मोहब्बत से बुलाओ ना..
कह दो.. मिलने का मन कर रहा है.. आओ ना।



दीवाना दौड़ के कोई लिपट न जाये,
आंखों में आंखें डालकर देखा न कीजिए।



देखा किये वह मस्त निगाहों से बार-बार,
जब तक.. शराब आई कई दौर चल गये।



देखा है मेरी नजरों ने, एक रंग छलकते पैमाने का,
यूँ खुलती है आंख किसी की, जैसे खुले दर मैखाने का।



देखो न आंखें भरकर किसी के तरफ कभी,
तुमको खबर नहीं जो तुम्हारी नजर में हैं।



दिखा के मदभरी आंखें कहा ये साकी ने,
हराम कहते हैं जिसको यह वो शराब नहीं।



देखो तो चश्मे-यार की जादूनिगाहियाँ,
हर इक को है गुमां कि मुखातिब हमीं से हैं।



निगाहे-लुत्फ से इकबार मुझको देख लेते है,
मुझे बेचैन करना जब उन्हें मंजूर होता है।



तेरा ये तीरे-नीमकश दिल के लिए अजाब है,
या इसे दिल से खींच ले या दिल के पार कर।



पीते-पीते जब भी आया तेरी आंखों का खयाल,
मैंने अपने हाथ से तोड़े हैं पैमाने बहुत।

No comments:

Post a Comment