Saturday, January 28, 2017

कविता...मुश्किलें जरुर है, मगर ठहरा नही हूँ मैं...

       मुश्किलें जरुर है, मगर ठहरा नही हूँ मैं. 
मंज़िल से जरा कह दो, अभी पहुंचा नही हूँ मैं.
       कदमो को बाँध न पाएंगी, मुसीबत कि जंजीरें,
रास्तों से जरा कह दो, अभी भटका नही हूँ मैं.
       सब्र का बाँध टूटेगा, तो फ़ना कर के रख दूंगा,
दुश्मन से जरा कह दो, अभी गरजा नही हूँ मैं.
       दिल में छुपा के रखी है, लड़कपन कि चाहतें,
दोस्तों से जरा कह दो, अभी बदला नही हूँ मैं.

      " साथ चलता है, दुआओ का काफिला,
किस्मत से जरा कह दो, अभी तनहा नही हूँ मैं...

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